छत्तीसगढ़ के चिरमिरी के साजापहाड़ इलाके में रहने वाले श्यामलाल राजवाड़े ने वह कर दिखाया, जो आमतौर पर असंभव माना जाता है। पानी की भारी किल्लत से जूझते अपने गांव के लिए श्यामलाल ने अकेले ही एक कुआं और तालाब खोद डाला। उनका यह प्रयास आज पूरे इलाके के लिए मिसाल बन गया है।
कैसे आया मन में यह विचार?
श्यामलाल बताते हैं कि उनके गांव में पानी की बहुत कमी थी। नदी-नाले सूख गए थे, बोरिंग भी फेल हो चुके थे। ऐसे में उन्होंने ठान लिया कि खुद ही तालाब खोदेंगे, ताकि गांव के लोग और जानवर पानी की समस्या से जूझना न पड़े। 1990 से उन्होंने खुदाई शुरू की। शुरुआत में गांव के लोग उन्हें पागल कहते थे, लेकिन श्यामलाल ने हार नहीं मानी।
संघर्ष और मेहनत का सफर
35 साल की मेहनत के बाद श्यामलाल का सपना साकार हुआ। आज उनके खोदे तालाब और कुएं से गांव के लोग और जानवर दोनों पानी पीकर जीवन जी रहे हैं। श्यामलाल बताते हैं कि सरकारी मदद उन्हें नाममात्र ही मिली, बाकी सब उन्होंने अपने दम पर किया। वे आज भी चाहते हैं कि प्रशासन उनकी मदद करे, ताकि तालाब को और गहरा किया जा सके।
समाज की सोच और श्यामलाल का हौसला
गांव के लोगों ने श्यामलाल का साथ नहीं दिया, बल्कि उन्हें पागल तक कहा। लेकिन श्यामलाल ने कभी हिम्मत नहीं हारी। पांचवीं कक्षा पास करने के बाद से ही उन्होंने खुदाई शुरू कर दी थी और आज उनकी मेहनत रंग लाई है।
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