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छत्तीसगढ़ के कवर्धा में चर्च पर हमला: एक परिवार की आपबीती

18 मई 2025, रविवार को छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में एक चर्च में प्रार्थना के दौरान बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद (VHP) के 80-100 लोगों की भीड़ ने हमला कर दिया। उस समय चर्च में लगभग 15-20 लोग प्रार्थना कर रहे थे। अचानक भगवा झंडे लिए हुए लोग चर्च में घुसे, धार्मिक किताबों के पन्ने फाड़े, कुर्सियां और माइक तोड़े गए। महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों तक को नहीं बख्शा गया।



यह चर्च पास्टर होजे थॉमस और उनका परिवार चलाता है। उनका बेटा जोशुआ उस समय मौके पर मौजूद था। जोशुआ के अनुसार, भीड़ ने न सिर्फ हिंसा की, बल्कि वीडियो बनाकर धमकाने की भी कोशिश की।

हमले के पीछे की वजह

जोशुआ का कहना है कि यह हमला अचानक नहीं था। उनके परिवार को कई महीनों से धमकियां मिल रही थीं और उन पर जबरन धर्मांतरण कराने के झूठे आरोप लगाए जा रहे थे। हालाँकि, पुलिस या कोर्ट के पास कोई ठोस शिकायत नहीं थी। एक बार एक व्यक्ति ने 1 लाख रुपये की फिरौती भी मांगी थी कि अगर पैसे दे दिए जाएं तो धर्मांतरण वाली खबर दबा दी जाएगी।

असल विवाद स्कूल फीस को लेकर था। बीजेपी नेता राजेंद्र चंद्रवंशी ने स्कूल को फोन कर अपने समर्थक के बच्चे का ट्रांसफर सर्टिफिकेट मांगा, जबकि बच्चा 2 साल से फीस नहीं दे रहा था। स्कूल ने सर्टिफिकेट देने से मना किया, तो दबाव बढ़ने लगा और परिवार को धमकाने की मुहिम शुरू हो गई।

पुलिस और प्रशासन की भूमिका

हमले के बाद पास्टर होजे थॉमस की पत्नी को भी पीटा गया, चर्च के सामान को नष्ट किया गया और उल्टा पीड़ित पेस्टर होजे को ही पुलिस थाने ले जाया गया। लगभग 24 घंटे बाद बिना किसी केस या एफआईआर के उन्हें छोड़ दिया गया। परिवार द्वारा एफआईआर दर्ज कराने की कोशिश की गई, लेकिन पुलिस ने कार्रवाई नहीं की। आरोप है कि पुलिस पर ऊपर से दबाव है, जिससे एफआईआर दर्ज नहीं की जा रही।

स्थानीय बीजेपी नेताओं, जिनमें जिला अध्यक्ष राजेंद्र चंद्रवंशी और राज्य के गृह मंत्री विजय शर्मा का नाम लिया गया, पर हमलावरों को संरक्षण देने का आरोप लगाया गया है। पुलिस ने चर्च का सीसीटीवी फुटेज जब्त कर लिया, लेकिन उसे अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया।

परिवार की स्थिति और समुदाय का डर

जोशुआ के अनुसार, उनका परिवार अभी भी छुपकर रह रहा है क्योंकि उन्हें लगातार खतरा है। हमले के बाद कवर्धा और आसपास के कई चर्चों ने रविवार की सभाएं बंद कर दी हैं। स्थानीय पेस्टर कैमरे के सामने बात करने से डर रहे हैं, क्योंकि जब कानून पीड़ित के साथ नहीं बल्कि हमलावर के साथ खड़ा दिखे, तो डर जायज है।

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