हाल ही में छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में एक बड़े ऑपरेशन के दौरान सुरक्षा बलों ने माओवादी संगठन के महासचिव और शीर्ष नेता नंबला केशवराव उर्फ़ बसवा राजू को मार गिराया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे नक्सलवाद के खिलाफ ऐतिहासिक जीत बताया और कहा कि इससे माओवादियों की रीढ़ टूट गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस ऑपरेशन की सराहना की।
ऑपरेशन की जानकारी
कुछ दिनों पहले कुर्रा कररे गुट्टा में एक बड़ा ऑपरेशन चला, जिसमें पुलिस ने दावा किया था कि यह निर्णायक रहेगा। हालांकि, उस समय कोई बड़ा नेता नहीं मारा गया था, लेकिन पुलिस का सर्च अभियान जारी रहा। आखिरकार, बीजापुर और नारायणपुर के सीमावर्ती इलाके में मुठभेड़ के दौरान बसवा राजू मारा गया। इस मुठभेड़ में कुल 27 माओवादी ढेर हुए और एक जवान शहीद हुआ, जबकि कुछ जवान घायल भी हुए।
अमित शाह और मोदी का बयान
अमित शाह ने ट्वीट कर कहा कि यह भारत की तीन दशक लंबी नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में सबसे बड़ी उपलब्धि है। ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट के बाद 54 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया और 84 ने आत्मसमर्पण किया है। मोदी सरकार का लक्ष्य है कि 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद पूरी तरह समाप्त कर दिया जाए।
कौन था बसवा राजू?
बसवा राजू, जिनका असली नाम नंबला केशवराव था, आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के जिन्ना पेटा गांव के रहने वाले थे। उनका जन्म 1955 में हुआ था। उनके पिता स्कूल शिक्षक थे। बसवा राजू ने वारंगल के रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक किया था। कॉलेज के दिनों में वे छात्र राजनीति में सक्रिय रहे और श्रीकाकुलम भूमि संघर्ष का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा।
माओवादी आंदोलन में प्रवेश
1976 में बसवा राजू पीपल्स वार पार्टी से जुड़े। 1980 में पार्टी के गोरिल्ला जोन स्थापित करने के फैसले के बाद वे आदिवासी इलाकों में सक्रिय हो गए। 1990 में उन्हें पार्टी की केंद्रीय समिति में शामिल किया गया। बाद में वे दंडकारण्य समिति के सचिव बने और 1995 में सैन्य मामलों के प्रमुख बने। 2004 में पीपल्स वार और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर के विलय के बाद वे केंद्रीय सैन्य आयोग के प्रभारी बने।
शीर्ष नेतृत्व और रणनीति
2016 में, जब गणपति ने स्वास्थ्य कारणों से महासचिव पद छोड़ा, तब बसवा राजू ने पार्टी की कमान संभाली। उन्होंने गोरिल्ला युद्ध की रणनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1987 में आंध्र प्रदेश के गोदावरी जिले में पुलिस पर पहला बड़ा हमला उन्होंने ही किया था। इसके अलावा, माओवादियों को लिट्टे से भी गोरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण दिलवाया।
व्यक्तिगत जीवन
बसवा राजू ने गढ़चिरौली की एक आदिवासी महिला अनीता से शादी की थी, जो खुद भी माओवादी आंदोलन का हिस्सा थीं। 2010 में अनीता की बीमारी से मृत्यु हो गई थी।
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