पानी की भयावह स्थितिगांव वाले गड्ढों का गंदा पानी पीते हैं, जिसे उबाला भी नहीं जाता और फरवरी तक ही उपलब्ध रहता है। गर्मी में झरनों से खोदकर पानी निकालते हैं, जबकि बरसात में छतों से टपकते या पॉलीथीन में इकट्ठा पानी पर निर्भर रहते हैं। अस्पताल 35 किमी दूर है और नदी पार करना मुश्किल होने से बीमारों को खटिया पर पहाड़ों से ले जाना पड़ता है।
दैनिक जीवन की कठिनाइयां
• चावल लेने बैरंगमगढ़ जाते हैं, सुबह 5-7 बजे निकलकर 9-11 बजे पहुंचते हैं और रात हो जाती है।
• बाजार मटवाड़ा, रेड्डी आदि जगहों पर जाते हैं; कोसरा, टोरा, तेंदू पत्ता बेचते हैं।
• हैंडपंप खोदे गए लेकिन मशीन न लगने से कामयाब नहीं; स्कूल और आंगनबाड़ी भवन बने लेकिन शुरू नहीं हुए।
विकास की कमी और माओवादियों का प्रभाव
ग्रामवासियों का कहना है कि, सरकारी अधिकारी कभी आते नहीं, सिर्फ मुठभेड़ के बाद गांव की पहचान होती है। माओवादी पहले आते थे लेकिन अब गांव में नहीं; वे हैंडपंप या सोलर लाइट का विरोध नहीं करते थे।
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